Thursday, 14 February 2019

चिंतनशील डायरी


चिंतनशील डायरी
दिनांक- 20/07/2018
आज विद्यालय प्रशिक्षण कार्यक्रम का पहला दिन था। हमारे ग्रुप के सभी साथी स्वावलंबी माध्यमिक विद्यालय गए। वहाँ के प्रधानाचार्य से मिले। उनकी वाणी, स्वभाव एवं व्यवहार सरल एवं सौम्य था। उन्हें आने का कारण बताया और वे बहुत खुश हुए। उनसे हमलोगों ने अपने-अपने विषय की जानकारी दी। उन्होंने कक्षा आवंटन करते हुए टाइमटेबल उपलब्ध कराया और अगले दिन से आने को कहा।
    प्रधानाचार्य से बात करने पर मुझे अच्छा लगा। चाहे वह कोई पद हो, वाणी, स्वभाव एवं व्यवहार अच्छा होना चाहिए। दूसरे को यह न लगे की पद के कारण उनमें कठोरता आ गयी है। जब हम किसी से जुड़ते हैं तो भाषा का सरल एवं मीठा होना अतिआवश्यक है। कहा भी गया है मीठी वाणी बोलिए मन का आपा खोय, औरन को शीतल करे आपहू शीतल होय। विद्यालय का माहौल मुझे अच्छा लगा। विद्यार्थी मैदान में खेल रहे थे। विद्यार्थियों से भी बात कर मुझे अच्छा लगा।
दिनांक- 21/07/2018
विद्यालय में शिक्षक एवं विद्यार्थियों के लिए शौचालय का उचित प्रबंध नहीं है। छात्र एवं शिक्षक खुले में ही लघु शंका के लिए जाते हैं तथा छात्राएँ पास के ही दूसरे स्कूल में जाती हैं। शिक्षकों से इस समस्या पर बात करने से पता चला कि पहले यह व्यवस्था थी, लेकिन अब यह व्यवस्था नहीं है। मकान गिर जाने से यह समस्या आई है। मैंने पूछा कि इसके लिए आपलोगों ने विद्यालय प्रबंधन से बात कि है तो बताया गया कि इस मसले पर बात की जा चुकी है लेकिन अभी तक उपलब्ध नहीं हो पाया है।
    सरकार सभी स्कूलों में इन मूलभूत सुविधाओं की बात तो करती है लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ और ही देखने को मिलता है। इसके लिए जिम्मेदार कौन से लोग है। क्या सरकारी तंत्र स्कूल की देखरेख सही से नहीं कर पा रहे हैं, यदि कर पा रहे हैं तो इतनी ढुलमुल रवैया क्यों है? क्या सरकार सरकारी स्कूल को खत्म करना चाह रही है? सरकारी स्कूल में गरीब के ही बच्चे पढ़ते हैं इसलिए सरकार ध्यान नहीं दे रही है या सिर्फ सुविधाओं को कागज पर दर्ज कर दिया जाता है? कई ऐसे सवाल मन में उठने लगे, जिसका हल मिलना मुश्किल था।
दिनांक- 23/07/2018
कक्षा-8 में दो ऐसे छात्र मिले जो लिखना एवं पढ़ना नहीं जानता है। उससे बात करने पर पता चला की इस स्कूल में वे 6वीं से ही पढ़ाई कर रहे हैं। मैं चिंतित हो गया। ऐसा क्यों है, क्या यहाँ के शिक्षकों ने उसपर ध्यान नहीं दिया है? उसकी भावनाओं एवं कमियों को समझने का प्रयास शिक्षकों ने नहीं किया है। क्या कमी रह गई जो इन विद्यार्थियों में प्रगति नहीं हो पायी है?
    इस विषय पर में प्रधानाचार्य महोदय से जा कर मिला। उन्हे मैंने समस्या से अवगत कराया। इस संबंध में जो जानकारी मुझे प्राप्त हुई वह चिंता का विषय है। प्रधानाचार्य महोदय को इस बारे में पहले से जानकारी थी कि कक्षा-8 में दो विद्यार्थी लिखना एवं पढ़ना (उच्चारण करना) नहीं जानते हैं। मैंने पूछा कि इसके लिए प्रयास नहीं किया गया, तो बोले कि अन्य कक्षाओं में भी यह समस्या है। इसके लिए प्रयास नहीं किया जा सका है। इन समस्या को वे मुझपर ही थोप दिए कि आप हिन्दी विश्वविद्यालय से आए हैं आप ही कुछ प्रयास कीजिए। इसके लिए अलग से कक्षा आयोजित करें। साथ ही आई सी टी लैब का भी प्रयोग कर बच्चों को सिखाएँ। अब मेरे लिए यह चुनौती का काम है। मैंने फिर इसपर कहा कि यह तो हिन्दी के शिक्षकों का कार्य है। मैं तो सिर्फ यह कर सकता हूँ कि बच्चों को आई सी टी लैब में समाज विज्ञान विषय को ज्यादा से ज्यादा चित्र एवं वीडियो के माध्यम से विद्यार्थियों को बताऊँ। वे इस बात से सहमत हुए कि समाज विज्ञान विषय को आप आई सी टी लैब में पढ़ाएँ जिसमें बच्चे चित्र और वीडियो के माध्यम से सीख पाये तथा उन विद्यार्थियों पर विशेष ध्यान दे जो लिख एवं पढ़ नहीं पा रहे हैं।
दिनांक- 26/07/2018 
कक्षा-8 में कुछ बच्चे नशाखोरी के शिकार मिले, वे खर्रा के आदि हो गए हैं। बच्चों से बात करने पर पता चला कि, इसकी आदत मुझे बहुत पहले से ही हो चुकी है। मैंने पूछ कि ये आदत कैसे लगी तो छात्रों ने बताया कि मेरे पिताजी एवं आस-पड़ोस के लोग खाते हैं जिसको देखर मुझे भी खाने की इच्छा जागी और अच्छा लगने लगा। मैंने पूछा कि यह आदत छुट सकती है, तो छात्रों ने बताया कि प्रयास करेंगे।
    बच्चों ने खर्रा खाना अनुकरण द्वारा सीखा। यदि घर-परिवार और आस-पड़ोस में ये चीजें उपलब्ध नहीं होती तो ऐसा नहीं होता। यह समस्या है कि बहुत सारी गलत आदत बच्चों में दूसरों से ही आता है, हम समाज को क्या बनाना चाहते है इसकी कोई ठोस व्यूहरचना निर्धारित नहीं कर पा रहे है। कोई सरकार नशा मुक्ति जागृति अभियान चलाते हैं तो कोई सरकार लाइसेंस बांटकर पुन: चालू करवा देते हैं। इस स्थिति में समाज को जो बनना चाहिए वह नहीं बन पाता है।
    नशाखोरी गलत बात है। उसमें भी 10-12 साल के बच्चों को यह लत लगना और भी गलत है। बच्चे का भविष्य क्या होगा? आने वाली पीढ़ी कैसी बनेगी? इस तरह के मसले पर विचार नहीं किया गया तो आने वाला समय इससे भी बुरा होगा।
दिनांक- 28/02/2018
सरकारी विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या की भारी कमी देखी जा रही है। इस विद्यालय में भी वही स्थिति है। कई क्लास में 15-16 ही बच्चे हैं। आठवीं क्लास में तो 7 ही बच्चे हैं। ऐसी स्थिति सरकारी स्कूलों की क्यों बनी है। क्या स्कूलों में पढ़ाई का स्तर गिर चुका है? क्या शिक्षक स्कूल में पढ़ाते नहीं हैं? मराठी या हिन्दी माध्यम में शिक्षा देने का मामला है? क्या सरकारी स्कूल में गरीब के ही छात्र पढ़ते हैं? सरकारी स्कूल में अन्य सुविधाओं की उपलब्धता की कमी है? सरकार सरकारी विद्यालयों को ठीक ढंग से संचालित नहीं कर पा रही है? क्या सरकारी स्कूलों में शिक्षक का अभाव है? कई ऐसे सवाल मन में आते है जो चिंतन करने पर मजबूर करते हैं।
    जहां तक पढ़ाई का स्तर है सरकारी स्कूलों के वनिस्पत निजी स्कूलों में बहुत अच्छी है। वहाँ देखरेख करने वाले मौजूद रहते है, आवश्यकतों की पूर्ति तुरंत की जाती है। विद्यार्थियों की प्रगति की जांच बार-बार की जाती है। शिक्षकों को इसकी ज़िम्मेदारी लेनी पड़ती है। यदि शिक्षक काम सही से नहीं करते हैं तो उसको तुरंत हटा दिया जाता है। उसके बदले नए टीचर को लाया जाता है।
    शिक्षा देने का माध्यम पेशे से जुड़ा होना चाहिए और जिसकी मांग हो उसी भाषा में शिक्षा मिलनी चाहिए। अक्सर देखा जाता है कि सरकारी स्कूल उन भाषाओं में विद्यार्थियों को शिक्षा मुहैया कराती है जिसमें वर्तमान समय का जरा सा भी ख्याल नहीं किया जाता है। आज अंग्रेजी का दौर है। ज़्यादातर बच्चों के अभिभावक उन स्कूलों का चुनाव करते है जहां बच्चे का भविष्य वर्तमान चुनौतियों का सामना कर सके। इस कारण से अधिकांश बच्चे निजी स्कूलों में चले जाते, सरकारी स्कूलों में बच्चे आते ही नहीं है।
    आज सरकारी स्कूल का मतलब गरीब के बच्चों से लिया जा रहा है। इन स्कूलों में वही बच्चे पढ़ रहे हैं, जिनके परिवारों को दो जून कि रोटी सही से नसीब नहीं हो पा रही है। ये बच्चे भी सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ते यदि इनके अभिभावक सही से भरण-पोषण करने की स्थिति में होते। कौन नहीं चाहता है कि मेरे बच्चों की शिक्षा सही स्कूल में हो और ऑफिसर बने।
    सरकारी स्कूलों में सुविधाओं कि भारी कमी है। शिक्षक नहीं है, खेलने के लिए साधन उपलब्ध नहीं है। पानी कि समस्या, शौचालय कि समस्या, साफ-सफाई कि समस्या, आई सी टी लैब, पुस्तकालय, स्मार्ट बोर्ड नहीं है। ये कमियाँ बच्चों को सरकारी स्कूल आने से रोकती है।
    सरकारी स्कूलों में सरकार कि उदासीनता दिखती है। सरकार सही से इन स्कूलों को नियमबद्ध नहीं कर पा रही है। मूलभूत सुविधाओं से इन्हें वंचित रखा गया है। वर्तमान कि जरूरत के हिसाब से इन विद्यालयों में बदलाव आवश्यक है।
दिनांक- 30/7/2018  
स्कूल में मिड डे मिल योजना के तहत विद्यार्थियों को रोज खिचड़ी दिया जाता है। मिड डे मिल योजना इसलिए चलाया गया था कि सभी विद्यार्थियों को सही से पोषण मिल सके। जो वंचित तबके हैं जिन्हें सही से पोषण उपलब्ध नहीं हो पाता है तथा वैसे बच्चे जो भोजन कि कमी को पूरा करने के लिए स्कूल नहीं आ पाते हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर स्कूल में स्थिति अच्छी नहीं है। सिर्फ खानापूर्ति कर दिया जाता है। सरकार द्वारा सप्ताह के दिनों के हिसाब से तथा बच्चों कि कैलोरी के हिसाब से मीनू तय किया गया है। जो विद्यार्थियों को स्कूल में उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। विद्यालय प्रशासन यह कह कर पलड़ा झाड़ रही है कि उस हिसाब से खाना बनाने में ज्यादा वक्त लग जाता है और खिचड़ी खिलाना बहुत आसान है। क्या खिचड़ी खिलाने से कैलोरी कि पूर्ति हो पाती है तथा रोज एक ही भोजन बच्चों को मिलेगा तो वह भोजन खाने कि इच्छा होगी? कतई नहीं, सबसे जरूरी है कि सरकारी स्कूल में अब वही बच्चे पढ़ते हैं जिनके अभिभावक बच्चों को सही से पोषनाहार भी नहीं दे पाते हैं। जब बच्चों को सही से कैलोरी कि पूर्ति नहीं होगी तो बच्चों का सही से विकास भी नहीं हो पाएगा। इस स्थिति में चाहिए कि बच्चों को सही से पोषनाहार मिले जिससे दिमाग भी सही से काम करेगा।
दिनांक- 01/08/2018
छात्राध्यापक के लिए बैठक रूम की साफ-सफाई विद्यालय के शिक्षक की बैठक रूम की तुलना में भिन्न स्थिति में है। कमरे की साफ-सफाई नहीं की जाती है। कुर्सी, टेबल और फर्श धूल से भरे पड़े हैं। साफ-सफाई के लिए कर्मचारी तो नियुक्त है। लेकिन कमरे की वो सफाई नहीं करते हैं। क्या छात्राध्यापक को यहाँ के शिक्षक के वनिस्पत नीचा समझा जाता है। क्या यह समझ लिया जाता है कि छात्राध्यापक कुछ नहीं बोलेंगे जैसे रहना है वो रहे हमें क्या करना है?
    सफाई ही जीवन है। इसे माना जाए तो कमरे कि साफ-सफाई होनी चाहिए। लेकिन कर्मचारी अपने उत्तरदायित्व से मुंह मोड़ लेता है। ऐसी स्थित में मैंने अपने छात्राध्यापक साथियों से बात कि की इस कमरे की साफ सफाई नहीं की जाती है क्यों नहीं हमलोग मिलकर इस कमरे की साफ-सफाई कर दें, क्योंकि इस कमरे में हमलोगों को ही बैठना है। इसमें सभी साथियों की सहमति बनी और यह तय किया गया कि शनिवार के दिन कमरे कि साफ-सफाई खुद करेंगे।
दिनांक- 02/08/2018
विद्यालय में विद्यार्थियों एवं शिक्षकों के लिए वाहन खड़ी करने के लिए साइकल स्टेंड कि सुविधा नहीं है। विद्यालय में ही यत्र-तत्र विद्यार्थी एवं शिक्षक वाहन खड़ी कर देते हैं। कुछ शिक्षक मेन गेट के अंदर यानि रास्ते पर ही वाहन खड़ी कर देते हैं। इस स्थित में विद्यालय कि सुंदरता धूमिल हो जाती है साथ ही विद्यालय आने-जाने में भी विद्यार्थियों को वाहन से चोट लगने का खतरा बना रहता है।
    इस स्थित में विद्यालय के बाहर काफी जगह है वहाँ विद्यार्थी एवं शिक्षक अपनी वाहन को खड़ी कर सकते हैं। इसके लिए साइकल स्टेंड का होना आवश्यक है। विद्यालय प्रशासन को चाहिए कि वाहन खड़ी करने के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था की जाए।
दिनांक- 03/08/2018       
विद्यालय में स्वच्छ पीने के लिए पानी कि सुविधा उपलब्ध नहीं है। शिक्षक तो अपने घर से पानी पीने के लिए लाते हैं लेकिन विद्यार्थी स्कूल में लगे साधारण नल से ही पानी पीते हैं। जल ही जीवन है। विद्यार्थियों को सही से जल भी नसीब नहीं होगा तो आने वाले समय में वह कैसा नागरिक बनेगा। जल प्रदूषण की समस्या दिनोदिन एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आयी है। आज शाहरीकरण का ही प्रभाव है कि कोई ऐसा शहर नहीं बचा है जहां पानी     पीने को शुद्ध मिल सके। स्कूल में कम-से-कम फिल्टर युक्त पानी कि सुविधा का होना अत्यंत ही आवश्यक है। बच्चे अभी ई सब समस्या से अनजान है। उसे यह भी अभी पता नहीं है कि जो हम पानी स्कूल में पीते हैं वह शुद्ध है या अशुद्ध है। इससे हमें कौन-कौन-सी समस्या आने वाले समय में होगी।
    विद्यालय प्रशासन को चाहिए कि बच्चों को शुद्ध पीने के लिए पानी का उचित प्रबंध कराएं। 
दिनांक- 04/08/2018
आज विद्यालय के बच्चे अपनी-अपनी कक्षा की साफ-सफाई का कार्य कर रहे थे। सभी बच्चे का मिलकर काम करना मुझे अच्छा लगा। बच्चों में सामूहिक होकर काम को अंजाम देना सामाजिकता को दिखाता है। स्कूल में इस तरह समूह में कार्य कराया जाए तो समाज में भी वे अपना योगदान समूह में करेंगे और काम भी आसान हो जाएगा। समाज व्यक्तियों या परिवारों के समूह से बनता है। समाज में देखा जाता है कि अन्य कई धर्मों के लोग रहते हैं। कभी-कभी इन धर्मों के बीच आपसी रंजिस भी होती है लेकिन वही समाज समूह में समाज के लिए कुछ करता है तो आपसी भाई-चारे का बंधन प्रगाढ़ होता है। इसलिए विद्यालयी जीवन में बच्चों में सामूहिकता का बोध कराना अत्यंत लाभदायक है।
दिनांक- 06/08/2018
आज सभी विद्यार्थियों को विद्यालय में लगे फूल के पौधों कि देखरेख करते हुए मैंने देखा। बच्चे फूल के पौधों को पानी दे रहे थे, कुछ बच्चे फूल के पौधों कि क्यारी बना रहे थे तथा जो पौधा बड़ा हो गया था उसकी कटाई-छटाई भी कर रहे थे। इस तरह के कार्य विद्यार्थियों को भारतीय सभ्यता से जोड़त है। भारतीय सभ्यता कृषि प्रधान सभ्यता है। जबकि वर्तमान समय में कृषि आत्महत्या के कारण बन चुके हैं। किसानों कि नाराजगी कृषि से बढ़ती जा रही है। आज किसान के बेटे भी कृषि कार्य करना नहीं चाहते हैं। नौकरी पेशे लोगों के बेटे कि तो दूर कि बात है। आज हमें यह नहीं देखने को मिलता है कि कोई अफसर का बेटा कृषि जैसे कार्य को करता है। वह अन्य कार्य कर अपनी जीविका कि पूर्ति कर लेता है लेकिन कृषि कार्य नहीं करता है।
    इस स्थिति में विद्यालय में बच्चों से इस तरह के कार्य कराना बच्चों को प्रकृति से जोड़ता है तथा कृषि जैसे कार्य से अवगत भी कराता है। 
दिनांक- 07/08/2018
आज विद्यालय में छुट्टी दे दी गई। पहले से कोई सूचना नहीं दी गई थी। सारे शिक्षक एवं विद्यार्थी आ गए थे। पता चला कि तीन दिन तक शिक्षकों की हड़ताल चल रही है। शिक्षकों की हड़ताल से बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है। शिक्षक अपनी मांग मनवाने के लिए इस तरह की हड़ताल करते हैं लेकिन बच्चे के भविष्य के साथ जरा सी भी परवाह नहीं की जाती है।
    शिक्षक अपनी मांग मनवाने के लिए कोई ओर दूसरा रास्ता नहीं अपना सकते हैं जिससे बच्चे का स्कूल प्रभावित ना हो सके। इसपर आंदोलन करता को सोचने की जरूरत है। यह भी की इस तरह के आंदोलन अचानक नहीं होते है। सरकार से लंबी प्रक्रिया के बाद इस तरह के ठोस कदम उठाए जाते हैं। एक तरह से देखा जाए तो सरकार की भी लापरवाही दिखती है।
दिनांक- 10/08/2018
आज विद्यालय प्रांगण में मेरी नजर दीवार लेखन पर पड़ी। सुविचार में लिखा हुआ था-
लहरों से डरकार नौका पार नहीं होती,
दिल से की गई मेहनत बेकार नहीं होती,
कुछ किए बिना ही जयकारा नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
और एक जगह राष्ट्रवंदना लिखा हुआ था-
तन मन धन से सदा सुखी हो, भारत देश हमारा
सभी धर्म अरु पंथ, पक्ष को, दिल से रहे प्यारा॥...
दोनों दीवार लेखन मुझे अच्छा लगा। एक में विद्यार्थियों को अपने मेहनत की और ऊर्जा का संचार कराते हुए दिखा तथा दूसरी ओर राष्ट्र के लिए जीवन को समर्पित करने वाला लगा। इस तरह कि लिखी हुई उक्ति विद्यार्थियों एवं शिक्षक के अपने कर्म की ओर रेखांकित करती है। विद्यालयों में सुविचार का लिखा जाना ऊर्जा का संचार करता है। 
दिनाक- 11/08/2018 
 आज मैंने आई.सी.टी. लैब का जायजा लिया। लैब में 15 कंप्यूटर लगे हुए हैं। एक शिक्षिका विद्यालय समय के अनुसार उपस्थित रहती है। वही विद्यार्थियों को कंप्यूटर के बारे में बताती है। शिक्षिका का स्वभाव अच्छा है। बातें करके मुझे अच्छा लगा। इन्टरनेट की सुविधा भी उपलब्ध है। इसमें एक प्रोजेक्टर भी लगा हुआ है।
    आधुनिक युग के अनुसार विद्यालय में आई.सी.टी.लैब का होना आवश्यक है। विद्यार्थियों को कंप्यूटर का ज्ञान होना चाहिए इससे बच्चे होजई बनेंगे तथा जिस प्रश्न का उत्तर विद्यार्थी खोजना चाहेंगे उसे गूगल से भी जान पाएंगे।       
दिनांक- 13/08/2018
आज सभी विद्यार्थियों से 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस) को लेकर पूर्वा अभ्यास कार्य करवाया गया। सभी विद्यार्थियों को खेल मैदान में कतार में खड़े करवाकर यह कार्य करवाया जा रहा था। कैसे खड़े होना है, कितनी दूरी पर खड़े रहना है, सावधान एवं विश्राम की मुद्रा क्या होगी तथा दायें और बाएँ कैसे मुड़ना है इसका प्रशिक्षण दिया जा रहा था। बच्चे इस तरह के कार्य को सीख रहे थे।
    15 अगस्त की तैयारी के लिए अच्छा अभ्यास कार्य था। इससे कार्य को अंजाम देने में सहूलियत होती है तथा बच्चों में अफरा-तफरी नहीं मचती है। किसी कार्य को अंजाम देने के लिए पूर्वाभ्यास कराना जरूरी है।    
दिनांक- 14/08/2018
आज बच्चों से राष्ट्रगान का अभ्यास करवाया गया लेकिन यहां राष्ट्रगान को राष्ट्रगीत कहा गया। मैं सोच में पड़ गया ऐसा क्यों होता है राष्ट्रगान को राष्ट्रगीत क्यों बोला जाता है। जब इसकी चर्चा विद्यालय के अध्यापक से की तो उनका कहना था कि महाराष्ट्र में राष्ट्रगान को राष्ट्रगीत ही कहा जाता है। मैंने उनसे पूछा की ये तो देश स्तर पर गलत है बच्चे कहीं दूसरे राज्य में जाएंगे तो अन्य बच्चे उसका मज़ाक उड़ाएंगे, इस तरह इसे बदलना चाहिए तथा जिसे सर्वमान्य माना गया है उसे ही बताना चाहिए तथा इस तरह के सवाल राष्ट्रीय स्तर पर पुछे जाते हैं वहाँ तो बच्चे गलत ही उत्तर लिखेंगे। तो अध्यापक का कहना हुआ कि आपका कहना उचित है लेकिन यहां के पाठ्यपुस्तक में राष्ट्रगीत ही लिखा है। तब मैंने कहा कि महाराष्ट्राबोर्ड को इसमें संशोधन के लिए लिखा जा सकता है। क्योंकि बच्चों को देश स्तर से भी जोड़ना जरूरी है। तब वे राजी हो गए और बोले कि ऐसा किया जा सकता है।                  
दिनांक- 16/08/2018
आज के दिन विद्यालय के सभी शिक्षक नहीं आए थे। कई घंटी खाली चल रही थी। छात्राध्यापक से कहा गया कि आज शिक्षक कम आए हैं जो क्लास आप लोगों को खाली लगे उसे इंगेज करें। हमलोगों ने जाकर इंगेज किया मैंने आज दो अलग-अलग क्लास में पढ़ाया।
    बच्चे सभी आए थे लेकिन शिक्षक नदारत थे। इससे बच्चे कि पढ़ाई बाधित होती है। शिक्षक कि ज़िम्मेदारी होती है कि प्रत्येक कार्य दिवस के दिन स्कूल आने की। बच्चे जब घर से निकलते हैं तो वे अपनी पूरी तैयारी करते हैं कि आज हमें कौन-कौन से विषय पढ़ने हैं तथा किस विषय में कौन-से शिक्षक ने होमवर्क दिया है। शिक्षक के नहीं आने पर मनोवल टूटता है। तथा निष्क्रियता कि ओर धकेल देता है। शिक्षक को जिम्मेदार नागरिक कि भूमिका का पालन करना अत्यंत ही आवश्यक है।    
दिनांक-18/08/2018
बच्चे आज विद्यालय प्रांगण के क्रीडा मैदान में क्रिकेट खेल रहे थे। क्रिकेट खेलते हुए बच्चे अच्छे लग रहे थे। सभी बच्चों में प्रेम भावना थी किसी से द्वेष भावना नहीं दिख रही थी।
    खेल को सिर्फ इंजाय के लिए खेला जाए तो यह प्रेम कि भावाना को प्रगाढ़ बनाती है। जब यही हार और जीत पर आ जाती है तो उसमें जलन और विद्वेष कि भावना घर कर जाती है। खेल को खेल कि तरह ही खेला जाए तो अच्छा लगता है। 
दिनांक- 20/08/2018
आज के दिन कुछ बच्चे विद्यालय के आहते में फूल लगा रहे थे। विद्यालय कि सुंदरता और विद्यालय के वातावरण को खुशबूनुमा बनाने के लिए अच्छा उपाय है। बच्चे कक्षा में पढ़ाई करते-करते ऊब जाते हैं। जब बच्चे विद्यालय परिसर में थोड़ा टहल लेते हैं तो यही फूलों कि सुगंध फिर से विद्यार्थियों में नई ऊर्जा का संचार करती है।
    इस तरह से देखा जाए तो विद्यालय में छोटा सा गार्डन होना अत्यंत ही आवश्यक है। जिससे वातावर भी ऊर्जावान बना रहे।   
दिनांक- 21/08/2018
आज दो बच्चे विद्यालय के बाहर मार-पीट कर रहे थे। मेरे पहुँचने पर मार-पीट करना बंद कर दिया था। मैंने कारण जाना तो पता चला कि वे दोनों टॉफी को लेकर लड़ाई कर रहे थे। एक कहना था कि इसने ज्यादा टॉफी पैकेट में रख ली है और मुझे कम दिया है जबकि पैसा दोनों का बराबर लगा है।
    मैंने समझाया कि जब दोनों का बराबर पैसा लगा है तो दोनों को आपस में बराबर बांटना चाहिए था। ऐसा करने से संबंध प्रगाढ़ होता है तथा दोस्ती टिकी रहती है। दोस्ती कि डोर विश्वास पर टिकी होती है। जब आप विश्वास खो देते हैं तो दोस्ती तुरंत ही टूट जाती है। अब यह बताइये कि आप दोनों दोस्ती रखना चाहते हैं कि दोस्ती को तोड़ना चाहते हैं। उन दोनों का कहना हुआ कि रखना चाहते है। इसके लिए जबतक आपस में सही से नहीं बांटेंगे तो दोस्ती कैसे निभेगी। फिर दोनों ने आपस में टॉफी को बराबर बांटा और मैंने दोनों को गले मिलने के लिए यह कहते हुए कहा कि जीवन में अपना  छवि निखारने के लिए सत्य के मार्ग पर चलना आवश्यक है।   
दिनांक- 23/08/2018
आज मैंने देखा कि क्लास के टाइम में कुछ बच्चे विद्यालय के बाहरी ग्राउंड में खेल रहे थे। मैंने पूछा कि अभी तो आप लोगों की क्लास चल रही और आप लोग यहां खेल रहे हैं। आपलोगों को कक्षा में होना चाहिए। छात्रों का कहना हुआ कि कक्षा में पढ़ते-पढ़ते बोर हो गए हैं इसलिए थोड़ा बाहर आए हैं। कुछ देर के बाद क्लास में जाएंगे। मैंने कहा इससे तो आपकी पढ़ाई छूट जाएगी। यह कहने पर सभी बच्चे अपनी-अपनी कक्षा की ओर चले गए।
    सवाल उठता है कि बच्चे क्लास में बोर महसूस क्यों करते हैं। शिक्षक जिस शिक्षण विधि का प्रयोग करते हैं क्या वह उबाऊ विधि होता है। यह हो सकता है शिक्षक द्वारा कई शिक्षण विधि का प्रयोग कर बच्चों को पढ़ाना चाहिए इससे बच्चों में ऊर्जा बनी रहती है तथा सीखने के आयामों में भी परिवर्तन होता है। जिससे बच्चे क्लास में उबाऊ महसूस नहीं करेंगे।       
दिनांक- 24/08/2018
मैं इस घटना को कई दिन से अनुभव कर रहा था, लेकिन स्पष्ट नहीं था। आज मैंने देखा कि पांचवी घंटी के आधा बिताने के बाद बच्चों का ध्यान भटकने लगा था। कारण यह था कि इस घंटी के बाद बच्चों को मिड-डे-मिल योजना के तहत खिचड़ी दिया जाता है। भोजन कि चाहत में बच्चे क्लास से जल्दी निकलना चाहते हैं और पढ़ाई में ध्यान कम देने लगते हैं।
    जिंदा रहने के लिए भोजन अतिआवश्यक है। लेकिन वह समय से हो तो अच्छा है। जब मैंने बच्चों को समझाया कि आपको समय पर ही छोड़ दिया जाएगा, लेकिन जबतक घंटी नहीं लग जाती तब तक आप लोग ध्यान से पढे। भोजन आपलोगों के लिए ही बना है और आपलोगों को ही मिलेगा।
    इसके बाद बच्चे शांतिपूर्वक पाठ की ओर ध्यान देने लगे।
दिनांक- 25/08/2018
बारिश होने के कारण आज बच्चे कक्षा में कम आए थे। बारिश प्रकृति की देन है यह मानवकृत नहीं है इस पर मानव रोक नहीं लगा सकता है। प्रकृति अपना काम करेगी। लेकिन हमें भी अपना काम कराते रहना चाहिए। बारिश से बचाव के उपाय मानव कर सकता है। विद्यार्थियों को भी चाहिए कि स्कूल  प्रत्येक दिन आए, चाहे बारिश हो या और कुछ। जब बारिश या अन्य प्राकृतिक प्रकोप बन जाए तो उस दिन विद्यालय नहीं आना लाजमी है। जब सामान्य घटना हो तो उसके लिए स्कूल नहीं आना इस पर विद्यालय प्रशासन को बच्चों को निर्देशित करने की जरूरत है।   
दिनांक- 27/08/2018
आज कक्षा में पढ़ाते समय ज़ोर-ज़ोर से बारिश होने लगी। बारिश के शोर के कारण कक्षा 10 मिनट के लिए बाधित हो गयी। कक्षा की छत टीन का बना होने के कारण शोर ज्यादा हो रहा था। पूरे विद्यालय की छत टीन का बना हुआ है। गर्मी के दिन में यह ज्यादा तब जाता है तथा बारिश होने पर टीन से शोर होने लगता है। विद्यालय प्रशासन को चाहिए कि वर्धा जैसी गर्मी से बचाव के लिए विद्यालय कि छत की कोई वैकल्पिक व्यवस्था करें।
दिनांक-28/08/2018
 कक्षा में बच्चे अनुशासन में नहीं रहते। मैंने 8वीं, 9वीं और 10वीं कक्षा में अनुभव किया। जब मैं शुरू में 8वीं कक्षा में पढ़ा रहा था तो मैंने इसे सामान्य घटना माना। लेकिन अन्य क्लास में भी यही हाल देखने को मिला। तब मुझे विश्वास हो गया कि अनुशासन को लेकर विद्यार्थियों में ज्ञान नहीं है। शिक्षक के कक्षा में रहने पर बात-चित करना, उठ कर कहीं चले जाना, कक्षा में शिक्षक के आने पर खड़ा नहीं होना, प्रश्न पुछने पर उसका उत्तर बैठे-बैठे देना इत्यादि।
    जब मैंने कक्षा में समझाया तो बच्चों में परिवर्तन दिखने लगा।      
दिनांक-30/08/2018
कक्षा में प्रोजेक्टर नहीं लगा है। मैंने यह महसूस किया कि यदि कक्षा में प्रोजेक्टर लगा रहता तो मैं अपनि पाठ योजना को बेहतर तरीके से विद्यार्थियों को समझा सकता था। प्रोजेक्टर नहीं होने के कारण मैंने लेपटाप से समझाना प्रारंभ कर दिया है।
    सरकारी स्कूल में इस तरह कि सुविधा का होना आवश्यक है। प्राइवेट स्कूल कि स्थिति सरकारी स्कूल से बेहतर हैं। वहाँ के बच्चे सरकारी स्कूल की अपेक्षा बढ़िया से पढ़ाई करते हैं। कारण यह है कि ये सारे स्कूल वर्तमान कि जरूरत को पूरी करते हैं।     
दिनांक-31/08/2018
आज मैंने महसूस किया कि कक्षा में स्मार्ट बोर्ड का होना आवश्यक है। इससे बच्चों को समझाने तथा प्रतिक्रिया को जानने में आसानी होती है। इस बोर्ड द्वारा हम बच्चे को चित्र, मूवी इत्यादि दिखा सकते हैं। विद्यार्थियों को एक ही तरीके से पढ़ाने से बच्चे बोर महसूस कक्षा में करते हैं। बच्चे कक्षा में बोरियत महसूस ना करे इसके लिए स्मार्ट बोर्ड होना जरूरी है।  
दिनांक-01/09/2018
शनिवार के दिन एन. सी. सी. में भाग लिए विद्यार्थियों से अभ्यास कार्य करवाया जा रहा था। सभी बच्चे एन. सी. सी. ड्रेस में आए थे। अभ्यास कार्य में कुछ बच्चे निर्देशों का पालन नहीं कर पा रहे थे।
    इसीलिए बार-बार अभ्यास कराने की जरूरत होती है। अभी से बच्चे यदि एन. सी. सी. जैसे कार्यों से जुड़ेंगे तो बच्चों में देशप्रेम की भावना का विस्तार होगा और आने वाले समय में एक अच्छे सैनिक भी बनेंगे क्योंकि एन. सी. सी. में उसी तरह की ट्रेनिंग दी जाती है। 
दिनांक- 03/09/2018
इस दिन रोटरी क्लब वर्धा सिटी, वर्धा की तरफ से पाँच विद्यार्थियों को साइकिल दिया गया। साइकिल वैसे छात्रों को दिया गया जो समाज में वंचित तबके से आते हैं तथा जिसके परिवार की आर्थिक स्थिति दयनीय है एवं जो अपने बच्चों को मूलभूत सुविधा भी नहीं दे पाते हैं।
    बच्चे साइकिल पाकर खुश थे। इन बच्चों का घर दूर होने तथा समय पर स्कूल न पहुँचना भी इन कारणों में सम्मिलित था।
    बच्चों की शिक्षा में बांधा को दूर करने का अच्छा प्रयास रोटरी क्लब वर्धा सिटी, वर्धा द्वारा किया गया। यह अच्छा प्रयास है। इस तरह के कार्य सामाजिक संगठन द्वारा किया जाना चाहिए। अच्छे नागरिक निर्माण में बच्चों का शिक्षित होना अतिआवश्यक। कई बच्चे मूलभूत सुविधा ना मिलने के कारण पिछड़ जाते हैं। सरकार को भी चाहिए की इस तरह के बच्चों को मूलभूत सुविधाएं प्रदान करें। 
दिनांक- 04/09/2018
आज कक्षा में विद्यार्थी को 1857 ई. के युद्ध की विफलता के कारणों पर चर्चा की। विफलता के कारणों को पी. पी. टी. द्वारा दिखाते हुए प्रश्न किया। बच्चे उत्सुक थे। प्रश्नों के उत्तर अपने ज्ञान के आधार पर बता रहे थे।
    बहुत सारे शिक्षक यह समझ लेते हैं कि बच्चे कुछ नहीं जानते हैं। यह समझना हमारे अज्ञानता को दर्शाता है। बच्चों में ज्ञान भरा होता है उसे सही तरीके से व्यवस्थित करने कि जरूरत है तथा विद्यार्थियों को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि मुझे कुछ नहीं आता है तथा बच्चों को सरल प्रश्न से कठिन प्रश्न पूछने चाहिए।  
दिनांक- 06/09/2018
इस दिन हमारे विभाग से एम. एड. की विद्यार्थी आई थी हमारे कक्षा का आबजर्ब करने।   
दिनांक- 07/09/2018
 कक्षा में आज दो विद्यार्थी पढ़ाई को रुकावट डाल रहा था। समझाने का भी कोई असर नहीं हो रहा था। मेरे समझाने का भी कोई असर नहीं था। वहाँ के प्रधानाचार्य से इसके बारे में सिकायत की गई। तब बच्चे कक्षा में शांत हुए। प्रधानाचार्य ने डांट लगाई और कहा कि तुम्हारी बहुत शिकायत आ रही है। दूसरी बार से आई तो तुम्हारे पिताजी को बुलाना पड़ेगा। इस तरह के कार्य से विद्यार्थियों पर असर पड़ा। छात्राध्यापक की बातों का बच्चों पर उतना असर नहीं होता है जितना कि वहाँ के शिक्षकों का होता है। बच्चे यह मानकर चलते हैं कि इन लोगों के द्वारा कुछ भी कार्रवाई नहीं हो सकती है। इन शिक्षकों को हल्के में लेते हैं।  
दिनांक- 08/09/2018
आज दो विद्यार्थी कक्षा में घर कि बात को लेकर लड़ रहे थे। कारण था कि खेल के मैदान में क्रिकेट खेलते हुए आउट कर दिया था। इसके बाद समस्या सुलझाने के लिए मैंने मैदान में सभी विद्यार्थियों को क्रिकेट खेलने के लिए कहा और दोनों विद्यार्थियों में प्रेम बढ़ाने के लिए एक ही टीम में रखा। फिर दोनों में मिलन हो गया।  
दिनांक- 11/09/2018
बच्चे आज गार्डन की देखभाल कर रहे थे। फूलों में पानी डाल रहे थे। तथा पौधों की जड़ों के पास मौजूद कचरे की सफाई कर रहे थे। इस तरह के कार्य से बच्चों में कृषि के प्रति जागरूकता एवं पर्यावरण संरक्षण की भावना का विकास होता है।  
दिनांक- 14/09/2018
आज शिक्षक अपने बैठक रूम में लगे चौकी पर सो रहे थे। विद्यार्थियों के बुलाने पर वे कक्षा की ओर गए। इस तरह की घटना पर बहुत सारे सवाल उठते हैं। नींद से जागकर कक्षा की ओर जाने से शिक्षक को पढ़ाने में मन नहीं लगेगा। क्या पढ़ाना है उसकी पूर्व से तैयारी नहीं की गई। कक्षा में पढ़ाते समय ऊर्जा महसूस नहीं करेंगे, इत्यादि।
    शिक्षक को विद्यालय के समय सोना नहीं चाहिए। जब शिक्षक ही सो जाएंगे तो विद्यार्थी कक्षा में क्या करेंगे। एक यह हो सकता है कि शिक्षक को रात में अन्य काम होने के कारण नींद पूरी नहीं हो पायी होगी। इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए शिक्षक को कि हम यदि विद्यालय जा रहे हैं तो हम विद्यालय में कक्षा को व्यवस्थित कैसे करेंगे तथा मुझे ही नींद आ जाएगी तो बच्चों को सही से नहीं पढ़ा पाएंगे।
दिनांक- 17/09/2018
आज कक्षा अष्टम एवं नवम में विद्यार्थियों को पोस्टर द्वारा पढ़ाया। पोस्टर देखकर किए गए सवाल का जवाब दे रहे थे। पोस्टर आकर्षक बनाया गया था। पोस्टर में चित्र का प्रयोग किया गया था। विद्यार्थी ध्यान पूर्वक पोस्टर को देख रहे थे तथा पोस्टर में उत्कीर्ण सूचना को विद्यार्थी अपने नोट बुक में नोट कर रहे थे।
    पोस्टर द्वारा पढ़ाना मुझे अच्छा लगा इसके पहले पी पी टी एवं वीडियो द्वारा विद्यार्थियों को पढ़ाया गया था। इसमें भी बच्चे रोचकपूर्ण तरीके से पढ़ाई कर रहे थे।
    कक्षा में टीचिंग एड का होना आवश्यक होता है। इससे बच्चे बोर नहीं होते हैं। अलग-अलग टीचिंग एड का प्रयोग करने से बच्चे कक्षा में उबाऊपन महसूस नहीं करते हैं। सभी शिक्षक साथियों को चाहिए की कक्षा में पढ़ाते वक्त तिचीन एड का प्रयोग करें।       
दिनांक- 18/09/2018
आज विद्यालय में मिड-डे-मिल योजना के तहत विद्यार्थियों को मिलने वाले आहार की गुणवत्ता की जांच के लिए टिम आई थी। विद्यार्थियों से पूछा गया कि खाने में आपको क्या-क्या विद्यालय में दिया जाता है, थाली साफ कौन करता है, हाथ साफ करने के लिए क्या व्यवस्था दिया जाता है। जांच के दौरान अनेक गड़बड़ियाँ देखी गयी। यहाँ के शिक्षकों को डांटते हुए कहा गया कि रोज अलग-अलग भोजन दीजिए, उसके लिए मीनू तय है। मीनू के आधार पर विद्यार्थियों को भोजन मिलना चाहिए। भोजन कि गुणवत्ता पर ध्यान देना आवश्यक है।
    इस तरह कि जांच होनी चाहिए, जांच होने से आज विद्यार्थियों के भोजन में सुधार देखने को मिला। जहां बच्चे रोज खिचड़ी खा रहे थे, आज बच्चों को पालक-दाल एवं चावल खाने को मिला तथा सारे बर्तन को साफ कराते हुए कर्मचारी को देखा गया। साबुन कि भी व्यवस्था थी। बच्चे साबुन से अपना हाथ साफ कर रहे थे एवं बच्चे को रोज थाली साफ करनी पड़ती थी आज बच्चे थाली अपने से साफ नहीं कर रहे थे, इस काम में लगे कर्मचारी आज बर्तन साफ कर रहे थे। विद्यालय में इस तरह कि जांच होनी चाहिए, सरकारी स्कूल कि स्थिति में सुधार न होने का कारण है, सरकार द्वारा चलायी गयी योजना का स्कूल में ठीक ढंग से लागू नहीं हो पाना। यदि ठीक ढंग से स्कूल में योजना का पालन किया जाय तो सरकारी स्कूल कि स्थिति प्राइवेट स्कूल से अच्छी होगी। पढ़ाई की गुणवत्ता में भी सुधार होगा तथा विद्यार्थियों की संख्या में भी वृद्धि होगी।                                   

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