परियोजना
कार्य
विद्यालय
में शौचालय व्यवस्था की स्थिति
विषय
प्रवेश
शौचालय
मानव द्वारा निर्मित एक ऐसी व्यवस्था है जो मानव अपने मल एवं मूत्र विसर्जन के लिए
समुचित व्यवस्था करता है तथा पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाता है। अपने तथा
अपने परिवार समाज के विशेषकर महिलाओं के साथ होने वाली सामाजिक दुर्व्यवहार से
निजात दिलाता है।
शौचालय
मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं-
1. शुष्क
शौचालय- जलरहित
2. नम
शौचालय- जल सहित
शौचालय
शब्द का प्रयोग उस घर या कक्ष के लिये किया जाता है जिसमें मल-मूत्र विसर्जन करने के
लिए उपयुक्त युक्ति लगी हो तथा वह साफ रहता हो। शौचालय की व्यवस्था होने से विद्यालयी
पर्यावरण स्वच्छ एवं सुंदर होता है तथा विद्यार्थियों को शर्म महसूस नहीं होता है।
विद्यालय में लड़कियां भी पढ़ती है लेकिन लड़कियां खुले में शोच करने नहीं जा सकती
है। इन असुविधाओं के चलते कई लड़कियां स्कूल नहीं आना चाहती है।
विद्यालय की सुंदरता को यदि आंकना हो तो
उचित शौचालय व्यवस्था से देखा जा सकता है। शौचालय की उचित व्यवस्था एवं उसकी
स्वच्छता से यह भी जाना जा सकता है कि वहाँ के शिक्षक एवं विद्यालय प्रबन्धक
स्वच्छता के प्रति कितने जागरूक हैं। आज यह देखा जाता है कि विद्यालय में उचित
शौचालय व्यवस्था का अभाव रहता है। इन सब असुविधा के चलते अच्छे घर के बच्चे इन
स्कूलों में पढ़ने नहीं आते हैं। इस घर के बच्चे उन स्कूलों का चुनाव करते हैं जहां
ये सारी सुविधाएं उपलब्ध होती है। यह देखा जाता है कि विद्यार्थी या विद्यार्थी के
पारिवारिक सदस्य स्कूलों का चुनाव सिर्फ अच्छी या उन्नत पढ़ाई के लिए इन स्कूलों का
चुनाव नहीं करते हैं बल्कि यह भी देखते हैं कि इन स्कूलों में कितनी सुविधाएं
मौजूद है।
विषय
का चयन-
इस
विषय का चयन इसलिए किया गया है कि ताकि यह जाना जा सके, विद्यालय में स्वच्छता की क्या स्थिति है तथा विद्यार्थियों के लिए इस
विद्यालय में शौचालय की क्या व्यवस्था है।
परियोजना
प्रश्न
1. विद्यालय
में शौचालय हेतु विद्यार्थी कहाँ जाते हैं?
2.
क्या विद्यालय में शौचालय
व्यवस्था है?
3. शौचालय
व्यवस्था है तो कैसी है?
4. स्वच्छता
की क्या स्थिति है?
5. साफ-सफाई
प्रत्येक दिन होता है?
परियोजना
का उद्देश्य
क.
शौचालय व्यवस्था से अवगत
होना।
ख.
विद्यार्थियों की सुविधाओं
को जानना।
ग.
प्रशासन को शौचालय व्यवस्था
में कमियों से अवगत कराना।
घ.
स्वच्छता अभियान में मदद
करना।
परियोजना
की प्रासंगिकता
यह
परियोजना कार्य विद्यालय तथा विद्यालय प्रशासन के लिए उपयोगी साबित होगा।
परियोजना
की सीमा
यह
परियोजना कार्य विद्यालय परिसर तक ही सीमित है तथा यह सिर्फ विद्यालय की शौचालय
व्यवस्था को दर्शाता है।
परियोजना
प्रविधि
इस
परियोजना कार्य गुणात्मक प्रविधि पर आधारित है, इसमें
क्षेत्र अध्ययन एवं साक्षात्कार का प्रयोग किया गया है।
तथ्य
संकलन
1. इस
विद्यालय में छात्र एवं शिक्षक मूत्र विसर्जन के लिए खुले में जाते हैं।
2. पहले
शौचालय गृह की व्यवस्था थी।
3. पुराना
होने के कारण मकान गिर गए है।
4. अभी
खंडहर मौजूद है।
5. इसी
खंडहर में छात्र मूत्र-विसर्जन को आते है।
6. गंदगी
काफी है।
7. मच्छड़
का प्रकोप है।
8. आस-पास
मकान होने के कारण छात्र को खुले में मूत्र-विसर्जन करने में शर्म आती है।
9. मल
विसर्जन हेतु विद्यालय के बाहर लगभग 200 मीटर की दूरी पर स्थित दूसरे स्कूल में
जाना पड़ता है।
10. इस
कार्य हेतु छात्रा को ज्यादा देर के लिए क्लास छोड़ना पड़ता है।
11. छात्राएँ
एवं शिक्षिकाएँ शौचालय हेतु विद्यालय के बाहर लगभग 200 मीटर की दूरी पर स्थित
बच्चों के स्कूल में जाती है।
12. इस
कार्य हेतु छात्राओं को ज्यादा देर के लिए क्लास छोड़ना पड़ता है।
13. विद्यालय प्रशासन एवं विद्यार्थियों से बातचीत
14. चित्र द्वारा प्राप्त साक्ष्य
चित्र
-1
(दीवार से सटकर खुले में मूत्र विसर्जन स्थान)
चित्र-
2
(पेड़ की ओट में मूत्र-विसर्जन करते छात्र)
चित्र-3
(यह खंडहर है जहां कभी शौचालय की व्यवस्था थी।)
निष्कर्ष
इस
विद्यालय की स्थापना 16/11/1942 को हुई थी। आज इस विद्यालय को बने लगभग 76 साल
पूरे हो चुके हैं। एक तरह से यह विद्यालय देश की आजादी को याद दिलाता है तथा करो
या मरो का नेतृत्व कर रहा है। आजादी के इतने साल में इस विद्यालय की सूरत बदलनी
चाहिए थी। कारण अब तो अपना स्वराज्य है, लेकिन
स्थिति दयनीय है। यहाँ के कर्मचारियों से बात करने पर पता चला कि यहाँ इतने अधिक
विद्यार्थी पढ़ते थे कि स्कूल छोटा पड़ जाता था। विद्यार्थियों का नामांकन रोकना
पड़ता था। इस विद्यालय के भवन अब जर्जर अवस्था को प्राप्त कर चुके हैं। ऐसे में
शौचालय गृह का गिरना कोई नई बात नहीं है। गौतम बुद्ध भी मानते हैं कि जो आया है
उसको जाना पड़ता है।
लेकिन इतने सालों में विद्यालय प्रशासन
को चाहिए था कि विद्यालय कि सारी व्यवस्था को नए सिरे से संवारा जाय लेकिन ऐसा
नहीं किया गया है।
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