Wednesday, 23 September 2015

सत्याग्रह का उद्देश्य

                                                                                                    - चन्दन कुमार, एस आर एफ(यूजीसी)
पी -एच. डी. ,अहिंसा एवं शांति अध्ययन विभाग
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा.
सत्याग्रह किसी भी नैतिक रूप से वांछनीय उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया जा सकता है। गांधीजी ने जिन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सत्याग्रह किए, उनसे ऐसे अनेक उद्देश्यों के उदाहरण मिलते हैं, जिनकी प्राप्ति के लिए सत्याग्रह का सहारा लिया गया ओर लिया जा सकता है। अपने नकारात्मक रूप में, सत्याग्रह अन्याय के विरुद्ध अहिंसक संघर्ष है और सकारात्मक दृष्टि से यह जन-कल्याण की दिशा में रचनात्मक कार्यक्रम का एक मार्ग है। वास्तव में सत्याग्रह उन नैतिक अधिकारों, स्वतंत्रताओं व अवसरों को प्राप्त करने का एक ऐसा साधन है, जो राज्य के हर व्यक्ति को सत्याग्रह के हर विधा की जानकारी होनी चाहिए। यह एक ऐसा रास्ता है जिसके द्वारा लोग अपनी शिकायतों की सुनवाई करावा सकते है और उन्हें दूर करवा सकते हैं। यह विवादों व समस्याओं के अहिंसक तथा स्थायी समाधान का एक अचूक साधन है। यह उन व्यवस्थाओं, नीतियों, क़ानूनों व आदेशों के उल्लंघन का एक विधि-सम्मत रास्ता है, जिन्हें व्यक्ति की आत्मा व विवेक स्वीकार न कर सकें।[1] सत्याग्रह कानून की अवहेलना करने के लिए नहीं किया जाता है बल्कि सत्याग्रही कानून की अवहेलना करने के बजाय, उसके उन प्रावधानों की अवहेलना करता है, जो अनैतिक अथवा अनुचित हों। यदि उनके स्थान पर नैतिक तथा औचित्यपूर्ण प्रावधान बना दिये जाएँ तो न केवल स्वयं कानून की गुणवत्ता बदेगी, बल्कि लोग भी उन्हें बिना किसी दबाब, डर, लोभ तथा लालच के सहर्ष को स्वीकार कर लेगा। इस प्रकार एक सत्याग्रही जो सामान्यत: कानूनों का पालन करता है, वह सत्याग्रह के माध्यम से क़ानूनों में ऐसे संशोधन की मांग करता है जिन से वो अधिक औचित्यपूर्ण तथा स्वीकार्य बन जाएँ। इस प्रकार वह तो राज्य का मित्र होता है, शत्रु नहीं।[2] गांधीजी के विभिन्न सत्याग्रहों के अध्ययन से ऐसा लगता है कि इसका प्रयोग किसी भी ऐसे उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया जा सकता है, जो स्वार्थपूर्ण न होकर समाज के कल्याण के लिए हो। यह सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक परिवर्तन का एक सकारात्मक तथा सबल साधन[3] एवं अहिंसक है।  

     सत्याग्रह कर्म और कर्ता में विभेद करता है और बुराई या गलती करने वाले पर आक्रमण करने के बजाय, उसके कुकर्म पर आक्रमण करता है। ऐसा करके वह अपने तथाकथित शत्रु को बुराई अथवा अन्याय का मुक़ाबला करने की दिशा में अपना सहयोगी बना लेता है। अपने विपक्षी अथवा शत्रु को सहपक्षी, सहयोगी तथा अंत में मित्र बना लेता है और यह सब वो अपने प्रतिपक्षी को सता कर, ब्लैकमेल करके या उसकी कमजोरी का फायदा उठाकर नहीं करता है, बल्कि उसकी बात सुन, समझ व मान कर और अपनी बात सुनवा, समझा व मनवा कर करता है। वह अपने प्रतिद्वंदी अथवा प्रतिपक्षी से तर्क करता है, उससे वाद-विवाद करता है, उसकी आत्मा को झकझोरता है, जितनी बात उसकी सही लगे उसे स्वीकार करता है और यदि इस सब से सफलता न मिले, तो अपने विपक्षी को पीड़ित करने के बजाय आत्मपीड़न तथा आत्म-बलिदान तक के लिए तैयार करता है।[4] रिचर्ड ग्रैग के अनुसार, सत्याग्रह एक ऐसा त्रिपक्षीय दर्पण है, जिसमें एक और सत्याग्रही अपने आपको विपक्षी की दृष्टि से देखता है, दूसरी ओर विपक्षी अपने आप को सत्याग्रही की दृष्टि से देखता है तथा तीसरी ओर दर्शक सत्याग्रही व उसके विपक्षी दोनों का परस्पर रूप देखते हैं और निर्णय करते हैं कि कौन कितना सही है और कितना गलत। इस प्रकार सत्याग्रह हृदय-परिवर्तन तथा जनजागरण का एक सबल साधन है। इसके द्वारा सत्याग्रही अपने विपक्षी को सत्य और न्याय का रास्ता चुनने और असत्य व अन्याय का मार्ग त्यागने के लिए प्रेरित करता है। वह अपने विपक्षी को यह भी समझाने का प्रयत्न करता है कि सताए जाने वाले के प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष, सक्रिय अथवा निष्क्रिय सहयोग के बिना सताने वाला अपने उद्देश्य में सफल हो ही नहीं सकता।[5] जिस तरह सत्याग्रही अन्याय करने वाले का अन्याय से पीछा छुड़ा कर उसे न्याय के रास्ते पर लाने का प्रयत्न करता है उसी तरह सत्याग्रही में भी परिवर्तन होता है तथा उसे महान बना देता है। गांधीजी ने सत्याग्रह के द्वारा न केवल अपने शत्रुओं को अपना सहपक्षी, सहयोगी तथा मित्र बना लिया, बल्कि वे स्वयं भी एक मामूली वकील से महात्मा बन[6] सत्य का मार्ग अपनाया।  
     सत्याग्रह दर्शकों अथवा सामान्य लोगों के जीवन की गुणवत्ता का भी विकास करता है। अपने समय की समस्याओं व विवादों के प्रति उनमें जागरूकता पैदा करता है जिससे वे उनके परस्पर गुण-अवगुणों को ध्यान में रखते हुए यह निश्चित कर सकें कि कौन कितना सही है व कौन कितना गलत। इस प्रक्रिया से आम लोग भी भले-बुरे, सही-गलत अथवा न्याय-अन्याय के बीच विभेद करना सीख जाते हैं और उनमें असीम सामाजिक व राजनैतिक जागरूकता आ जाती है, भले ही वो अशिक्षित क्यों न हो। इस प्रकार सत्याग्रह अत्याचारी, सत्याग्रही तथा सामान्य दर्शकों सभी का समान रूप से उद्धार करता है, उन्हें जागरूक व शिक्षित बनाता है और उनके जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाता है। इन सभी के लिए सत्याग्रह एक ऐसा माहौल पैदा करता है, जिसमें हर व्यक्ति अपने विवेक तथा आत्मा की आवाज को सुनकर, सभी समस्याओं व विवादों का अहिंसक तथा स्थायी समाधान निकाल सकता है और एक ऐसे विकल्प पर पहुँच जा सकता है जो अंतत: सबको स्वीकार्य[7] एवं सामाजिक न्याय के अनुकूल हो। 
   
संपर्क: अहिंसा एवं शांति अध्ययन विभाग, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालयवर्धामहाराष्ट्र, 442005, मो. नं. 9763710526,  ई-मेल chandankumarjrf@gmail.com 



संदर्भ सूची 

  1. [1] रतन, राम एवं शोभिका, शारदा; महात्मा गांधी की राजनैतिक अवधारणायें, कालिंगा पब्लिकेशन्स, दिल्ली, 1992, पृ. 101  
  2. [2] वही,    
  3. [3] वही,  
  4. [4] वही, पृ. 101-2
  5. [5] वही, पृ. 102
  6. [6] वही,
  7. [7] रतन, राम एवं शोभिका, शारदा; महात्मा गांधी की राजनैतिक अवधारणायें, कालिंगा पब्लिकेशन्स, दिल्ली, 1992, पृ. 102

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