Tuesday, 23 September 2014

लोहिया और भारत विभाजन

- चन्दन कुमार, जेआरएफ(यूजीसी)
पी -एच. डी. ,अहिंसा एवं शांति अध्ययन विभाग
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा.
मो.-09763710526 ; ई मेल:chandankumarjrf@gmail

          लोहिया जी भारत विभाजन को नकली मानते थे और उनका विश्वास था कि एक दिन फिर देश के बंटे हुए टुकड़े एक होकर पूरा भारत एक बनेगा और लोग आपसी मतभेद को भूल जाएंगे तथा भारत का विभाजन  एक घृणित दुर्घटना थी।
लोहिया जी का मानना है कि मिस्टर जिन्ना इतने बढ़िया मुसलमान न थे फिर भी भारत के मुसलमानों ने ऐसे व्यक्ति को अगुवाई के लिए चुना जो उनके हितों को अच्छी तरह साध न सका।
भारत का विभाजन जिन कारणों द्वारा हुआ था उनमें लोहिया जी ने आठ प्रमुख कारण दिये हैं। उनका मानना था कि एक ब्रितानी कपट, दो कांग्रेस नेतृत्व का उतारवय, तीन हिन्दू-मुस्लिम दंगों की प्रत्यक्ष परिस्थिति, चार जनता में दृढता और सामर्थ्य का अभाव, पांच गांधीजी की अहिंसा, छः मुस्लिम लीग की फूटनीति, सात आए हुए अवसरों से लाभ उठा सकने की असमर्थता और आठ हिन्दू अहंकार।
लोहिया जी ने हिन्दू चोटी और मुस्लिम दाढ़ी हटाने तथा धार्मिक प्रतीक वाले कपड़ों, नाम और रहन-सहन से दूर हटने की बात कही है, वे कहते हैं कि इसे मैं समीपता लाने का प्रथम प्रयास मानता रहा हूँ। प्रथम प्रयास के रूप में भी यह काम लगभग असंभव है, जब तक मानसिक बदलाव का भी प्रयत्न न किया जाए। किसी व्यक्ति का बाहरी स्वरूप उसके आन्तरिक चरित्र की प्रतिछवि है। विचार आदत और  आत्मगौरव के आधार का प्रतिबिंब उसका बाह्य रूप ही है। भारत के हिन्दू व मुसलमान एक ही इतिहास के प्रति भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण रखते हैं।
लोहिया जी ने दो राष्ट्र-सिद्धान्त को ठुकराने की सलाह दी थी और प्रखर रूप से यह भी प्रेरित किया कि हमें सदैव अविभाजित भारत की कामना रखनी चाहिए। महात्मा गांधीजी ने इसका समर्थन किया, जिससे श्री नेहरू ताव में आ गये। उन्हें एक राष्ट्र' या हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई की लगातार रट लगाये रहना जब कि हिन्दू-मुसलमान एक-दूसरे का गला काटने को उतारू थे, यह बात असंगत सी लगी और मिस्टर जिन्ना से लगातार बातें चलाना भी उन्हें बेकार मालूम होता था। मिस्टर जिन्ना के पीछे गांधीजी का दौड़ना श्री आजाद की तरह लोहिया जी को भी नापसन्द था लेकिन इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि गांधीजी मिस्टर जिन्ना के पीछे कभी-कभी इसलिए दौड़ते थे कि राष्ट्रीयतावादी मुसलमान आलसी थे और उनका नेता ऐसे राजनीतिकों का शाहजादा था जो मात्र भाषण और चालबाजी का नायक था। कुछ भी हो, गांधीजी अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए जरूरत से कुछ अधिक ही खुशामद की ओर झुकते थे।
खान अब्दुल गफ्फार खां महज दो वाक्यों में बोले। उन्होंने इस बात पर अपना दुख प्रकट किया कि उनके सहयोगियों ने विभाजन की योजना को स्वीकार कर लिया है। लोहिया जी ने कांग्रेसी नेता की चाल को समझ लिया था, गांधीजी की इच्छा कि मुस्लिम लीग को अकेले ही देश का शासन करने दें, कांग्रेसी नेता ने कोई महत्व नहीं दिया, क्योंकि वे स्वयं शासन का व्यापार करने को अत्यधिक लालायित थे। वास्तव में वे बेशर्मी की हद तक लालायित थे।
लोहिया जी का मानना है कि किसी-किसी अवसर पर राष्ट्रीय आंदोलन ने पिछडे़ मुसलमानों, मोमिनों को प्रोत्साहित करने की नीति को जरूर अपनाया, लेकिन यह नीति इतनी दांवपेंच भरी थी कि संतोषप्रद नतीजे नहीं निकले। यदि सभी पिछड़ी जातियों, हिन्दू और मुसलमानों को जाति-प्रथा का नाश करने और बराबरी लाने की नीयत से प्रोत्साहन दिया जाता और यदि राष्ट्रीय आन्दोलन, कम से कम असहयोग आन्दोलन के समय से इस नीति के ढंग से अमल होता, तो भारत का विभाजन नहीं होता।
लोहिया जी का मानना था कि गांधीजी ने भी एक बार कहा था, मुस्लिम लीग की सरकार समस्त भारत के हित में चाहे जो कर सकती है। उसे आबादी के एक तबके के हित में और बाकी के अहित में काम करने की छूट न होती। सामान्य हित में और एक तबके के हित के अन्तर को समझने की बात ब्रिटिश वायसराय के निर्णय पर छोड़ दी जाती। राष्ट्रीय नीति का ऐसा साहसिक निर्णय यदि सफल हो जाता तो भारत अविभाजित ही बना रहता और यदि यह असफल भी होता तो भी देश को जरा भी नुकसान न पहुंचता, इस बात पर गंभीरता से विचार ही नहीं किया गया, जो इस बात का प्रमाण है कि कांग्रेस नेतृत्व कम महत्व के कामों में फंसा हुआ था।
लोहिया जी मानते हैं कि एक समय में श्री आजाद ने एक बडे़ कमाल का काम किया था कि उन्होंने पंजाब यूनियनिस्टों को, जिनमें से कई मिस्टर जिन्ना से जुडे़ हुए थे, कांग्रेस के साथ मिली-जुली सरकार बनाने के लिए राजी कर लिया था। बहुत से लोगों को यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि लगी थी।
लोहिया जी का मानना था कि हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच ज्यादा से ज्यादा सद्भावना से ही, जिसका अभाव पाकिस्तान बनने का मुख्य कारण है, देश के विभाजन की दीवार को तोड़ा जा सकता है। कोई भी हिन्दू जो विभाजन का दुश्मन है, उसे लाजिमी तौर पर मुसलमान का दोस्त होना चाहिए।

लोहिया अन्‍तधार्मिक विवाहों की वकालत करते हुए कहते हैं कि, सामाजिक क्षेत्र मे पूरी सद्भावना विवाह से सम्बन्धित होती है। मुझे यकीन है कि जब तक देश में होने वाला सौ में एक विवाह हिन्दू और मुसलमान के बीच न होगा, तब तक देश में यह समस्या पूरी तौर पर नहीं सुलझेगी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अधिकांश मुसलमान पहले के हिन्दू हैं। यदि हिन्दू और मुसलमान भी भारत के इतिहास के दुखों को आपस में बांट लें, तो वह पाप जिसके कारण विभाजन हुआ, कम हो सकेगा। वे कहते हैं कि, मैं सिर्फ इतना कह सकता हूँ कि स्थिरता और सदृढ़ता अन्तर की कमी के कारण ही देश का विभाजन हुआ।

गांधी और सांप्रदायिक एकता


                   


- चन्दन कुमार, जेआरएफ(यूजीसी)

पी -एच. डी. ,अहिंसा एवं शांति अध्ययन विभाग

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा.

मो.-09763710526 ; ई मेल:chandankumarjrf@gmail.com  






           गांधीजी के अनुसार भारत में हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिकता बाटों और राज करो की नीति के आधार पर अंग्रेजों की देन है। भारत में साम्प्रदायिकता अंग्रेजों की उस साजिश की उत्पाद थी जिसकी मदद से वे अपनी शासन की अवधि लम्बी खींचना चाहते थे। पहले हिंदू लोग मुसलमान बादशाहों के मातहत और मुसलमान हिंदू राजाओं के मातहत रहते आए। दोनों को बाद में समझ में आया कि झगड़ने से कोई फायदा नहीं, लड़ाई से कोई अपना धर्म नहीं छोड़ेंगे और कोई अपनी जिद भी नहीं छोड़ेंगे। इसलिए दोनों ने मिलकर रहने का फैसला किया। झगड़े तो फिर से अंग्रेजों ने शुरू करवाए।” (हिन्द स्वराज, पृ. 32)
गो-वध को एक धार्मिक मसला बना दिया गया, जिसको लेकर दोनों समुदायों के लोग हमेशा लड़ते रहे हैं। इस समस्या का हल शांतिपूर्ण समझौता के द्वारा ही सम्भव है। शक्ति का प्रयोग इस समस्या का हल नहीं है। गाय की रक्षा हिंसात्मक तरीके से असम्भव है। गांधीजी  हिन्दूओं को आगाह करते हुए हिन्द स्वराज पुस्तक में लिखा है कि “मेरा भाई गाय को मारने दौड़े, तो मैं उसके साथ कैसा बरताव करूंगा? उसे मारूँगा या उसके पैरों में पड़ूँगा? अगर आप कहें कि मुझे उसके पांव पड़ना चाहिए, तो मुझे मुसलमान भाई के भी पांव पड़ना चाहिए तथा गाय को दु:ख देकर हिन्दू गाय का वध करता है; इससे गाय को कौन छुड़ाता है? जो हिन्दू गाय की औलाद (बैल) को पैना भोंकता है, उस हिन्दू को कौन समझाता है? गाय की रक्षा करने का एक यही उपाय है कि अपने मुसलमान भाई के सामने हाथ जोड़ने चाहिए और उसे देश के खातिर गाय को बचाने के लिए समझाना चाहिए। अगर वह न समझे तो गाय को मरने देना चाहिए, क्योंकि वह मेरे बस की बात नहीं। अगर मुझे गाय पर अत्यंत दया आती हो तो अपनी जान दे देनी चाहिए, लेकिन मुसलमान की जान नहीं लेनी चाहिए।
साम्प्रदायिकता हिन्दुओं और मुसलमानों के धार्मिक मिथ्याबोध और असहिष्णुता के गर्भ से उत्पन्न होती है। भारत में गो-हत्या, मस्जिद के आगे बाजा बजाना और शुद्धि इत्यादि साम्प्रदायिक दंगों के स्थाई स्रोत रहे हैं। अतः साम्प्रदायिक एकता के लिए यह जरूरी है कि जिस मानसिकता या व्यवहार से हिन्दू भाईयों या मुसलमान भाई को चोट पहुंचती है वह बंद कर दें । यदि मुसलमान भाईयों को मस्जिद के आगे बाजा बजाने से कष्ट होता है तो हिन्दू भाई बाजा बजाना छोड़ दें। मस्जिद के सामने वाद्ययन्त्र बजाना हिन्दू और मुसलमानों के झगड़े का कारण नहीं होना चाहिए। बिना कुछ सोचे सभी चीजों को धर्म के साथ नहीं जोड़ना चाहिए। हिन्दुओं को चाहिए कि वे मस्जिद के सामने वाद्ययन्त्र बजाने की हरकत न करें। यह उनके लिए कोई धार्मिक महत्व की बात नहीं है।
इस तरह हिंदू और मुसलमान भाईयों को चाहिए कि ऐसा कोई असोभनीय कार्य न करें जिससे एक-दूसरे की भावनाओं और विचारों को ठेस पहुंचती हो। अगर मैं टेढ़ा बनूंगा, तो वह भी टेढ़ा बनेगा। अगर मैं बालिश्त भर नमूंगा, तो वह हाथ भर नमेगा और अगर वह नहीं भी नमे तो मेरा नमना गलत नहीं कहलाएगा।”(हिन्द स्वराज, पृ. 33)
एकता में बल है यह कोरा किताबी जुमला नहीं बल्कि जिन्दगी का जीता-जागता नियम है और हिन्दू-मुस्लिम एकता की अच्छी मिसाल है। आपसी फूट से तो हमारी बर्बादी ही है धर्म मनुष्य को मनुष्य से अलग करने के लिए नहीं, उनको आपस में जोड़ने के लिए है। यह तो बदकिस्मती की बात है कि आज उनका रूप कुछ इस तरह का बिगाड़ दिया गया है। जब तक मनुष्य भय, घृणा और द्वेष के धरातल से ऊपर नहीं उठेगा, तब तक साम्प्रदायिक द्वेष और दुश्मनी का अंत नहीं हो सकता। साम्प्रदायिक सौहार्द्र और दोस्ती का वातावरण बनाने के लिए भय, द्वेष और घृणा जो इसके दुश्मन हैं, की हत्या जरूरी है। साम्प्रदायिक एकता दिलों की अटूट एकता का नाम है। अलग-अलग मजहबों की किताबों को उन मजहबों को मानने वालों की निगाहों से पढ़ें तो हमें पता चलेगा कि सब मजहबों की जड़ एक है। सभी धर्म हमें एक ही उपदेश देते हैं कि सम्पूर्ण मानव-समाज एक कुटुम्ब है और मानव-समाज की एकता को साक्षात करना ही मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य है। धर्म मनुष्य को ईश्वर से और मनुष्य को मनुष्य से जोड़ता है। क्या इस्लाम मुसलमान को केवल मुसलमान से ही जोड़ता है और हिंदू को उनकी बैरी बनाता है? पैगम्बर ने जो शांति का संदेश दिया वह केवल मुसलमानों के हित में और केवल मुसलमानों के आपसी संबंध के विषय में ही था? क्या उनका संदेश यह था कि हिंदुओं और गैर मुसलमानों के खिलाफ युद्ध करते रहो?” (हरिजन, 4 मई 1940)
गांधी के अनुसार धर्म परिवर्तन से एकता नहीं बनती है बल्कि इससे धर्म विरोधी प्रवृतियाँ पनपती है। अतः धर्म-परिवर्तन के बजाय हम अपने को अच्छा हिन्दू, अच्छा मुसलमान और अच्छा ईसाई साबित करने का प्रयास करें। यह एक साथ रहने की कुंजी है। क्या धर्म बदला इसलिए हम आपस में दुश्मन बन गए? धर्म तो एक ही जगह पहुंचने के अलग-अलग रास्ते हैं। हम दोनों अलग-अलग रास्ते लें, इससे क्या हो गया? उसमें लड़ाई काहे की?” (हिन्द स्वराज, पृ. 32) धार्मिक संघर्ष को कम करने के लिए यह जरूरी है कि हम सहिष्णुता को बढ़ाएं और अपने ऊपर पूर्ण नियन्त्रण रखें। गांधी के अनुसार सहिष्णुता साम्प्रदायिक संघर्ष के समाधान की कुंजी है। वर्तमान समय की मांग है।
सांप्रदायिक सद्भाव के लिए एक-दूसरे के करीब आना आवश्‍यक है। हिन्दुओं को चाहिए कि वे मुसलमानों की ओर मदद का हाथ बढावें और बहुसंख्य होने के नाते उन पर जबरदस्ती अपने अधिकारों को न थोपें। अगर हिंदू माने कि सारा हिंदुस्तान सिर्फ हिंदुओं से भरा होना चाहिए, तो यह एक निरा सपना है। मुसलमान अगर ऐसा मानें कि उसमें सिर्फ मुसलमान ही रहें, तो उसे भी सपना ही समझिए। फिर भी हिंदू मुसलमान, पारसी, ईसाई जो इस देश को अपना वतन मानकर बस चुके हैं, एक- देशी एक-मुल्की हैं, वे देशी भाई हैं, और उन्हें एक-दूसरे के स्वार्थ के लिए भी एक होकर रहना पड़ेगा। (हिन्द स्वराज, पृ. 31)  जब तक हिंदुओं तथा मुसलमानों में एकता स्थापित नहीं हो जाती, देश तब तक कोई निश्चित प्रगति नहीं कर सकता। जब तक दोनों जातियाँ एक-दूसरे पर विश्वास करने की और मिलकर काम करने की आवश्यकता अनुभव नहीं करती तब तक भारत उन्नति नहीं कर सकता। मित्रता कदापि सौदे की वस्तु नहीं हो सकती। सेवा करना कर्तव्य है और कर्तव्य एक ऋण है। इस ऋण को चुकता न करना पाप है। गाय की जान बचाने के लिए भी, अपने ही साथी, मनुष्य की हत्या करना हिंदू धर्म नहीं है। हिंदू धर्म एक सच्चे हिंदू को स्वधर्म की खातिर अर्थात गो-रक्षा के निमित्त स्वयं कष्ट सहने का आदेश देता है। गांधी अन्तिम श्वास तक साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के समर्थक बने रहे। हिन्दू -मुस्लिम एकता गांधी के चिंतन का मूलाधार रहा। ईश्वर-अल्ला तेरो नाम' वाला भजन उनका मूल मंत्र एवं संदेश था।